मंगलवार, 25 नवंबर 2008

कालरात्रि

आ ! शक्ति सप्तभ्यंकरी।
मां कालरात्रि शुभंकरी॥

हस्त तीक्ष्ण कटार वाली
लौह कंटक धार वाली
त्रिनेत्री हे अभय दानी
भक्त हित कर अपर दानी
कण्ठ विधुत माल शोभित
रक्तिम चुनर बाघम्बरी।

जब दानवी परिवृत्ति हरषे
तव नासिका ज्वालाग्नि बरसे
सब भूत-प्रेत पिशाचिनी
मां भक्त भय दुःख वारिणी

भुज चार गर्दभ वाहना
अरू वेश भूषा भयंकरी।

मन टिके चक्र सहस्त्रार
खुल जाए सिद्धि समस्त द्वार
मिलो मां उर की ये पुकार
पुण्य फल दे दो अपार

कृष्ण ऱूपा केश बिखरे
शाकम्भरी अभयँकरी।

गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

सिद्धिदात्री

जै जै सिद्धिदात्री जय माँ
सिद्धि अष्टदश दात्री जय मां

शंख, चक्र, कर कमल सुहावन
गदा पद्म आसन मन भावन
सुर नर मुनि दानव सब पूजें
आपस में तेरे बल जूझे
बने अर्द्धनारीश्वर शिव जी
पाकर कृपा तुम्हारी जय मां।

सच्चे मन से जिसने ठाना
कठिन नहीं है मां को पाना
मां की कृपा भक्त पर घूमें
उसका चरण सफलता चूमें
नवीं शक्ति दुर्गामाता की
सिंह सवार विधात्री जय मां।

जो नित मां की करे उपासना
समझो पूरी सकल कामना
पल भर मां से लगन लगाये
सुख उसके घर दौड़ के आये
है प्रसन्न होने की देरी
करूणा सिन्धु दात्री जय मां।

महागौरी

कलियुग काल रूप में आया।
दया करो महागौरी मां॥

शिव को पाना हुई समस्या
की पार्वती ने घोर तपस्या
गौर वर्ण हुआ जब काला
शिव ने गंगा जल फिर डाला
हुई चारू चन्द्र मय आभा
नाम महागौरी कहलाया।

कर त्रिशूल शिव शस्त्र उठाये
डिमिक डिमिक डिम डमरू बजायें
बैल सवार अभय कर दानी
निज भक्तों हित मां वरदानी

कुन्द पुष्प-सा वस्त्र भूषण
मां का रूप जगत को भाया।

अष्ट शक्ति मां चतुर्भुजा मां
शान्त मना क्या रूप सजा मां
जो भी सच्चे मन से जपते
जग में कार्य अंसम्भव करते
सरिता – सागर सा मिल मां से
बदल जायेगी जीवन काया।

कात्यानी

चतुर्भुजी कात्यायनी जै जै।
षष्ठी रूप भवानी जै जै,
जय हो जय कात्यायनी जै जै॥
ऋषि की मां से लगन लगी जब
परा अम्बा की शक्ति जगी तब
कन्या बनी भगवती माता
बने कात्यायन जी फिर ताता

तीन देव अंश अवतारी
महिषासुर संहारनी जै जै।

एक हाथ में कमल सुसाजे
दूजे में तलवार विराजे
तीजा हाथ अभय का दानी
चौथा भक्तों हित वरदानी
स्वर्ण मुकुट मकराकृत कुंडल
कल्यानी सिंह वाहिनी जै जै।

पति अनुरूप कृष्ण जब सूझा
यमुना तट गोपियों ने पूजा
हम भी तेरे बने पुजारी
सुन ले मैया अरज हमारी

दरस बिना आँखें अब तरसे
ब्रज अधिष्ठात्री ठानी जै जै।

स्कन्दमाता

जै हो जै हो जय हो स्कन्द मैया।
कर दे भक्तों की शक्ति बुलन्द मैया॥
कर में कमल लाल
अंक कार्तिकेय लाल
पद्म आसन कमाल
सिर पे मुकुट विशाल
सुन ले पुकार, आ शेर पे सवार
बिखेर दे दया की सुगन्ध मैया।
चार भुज स्वरूपा
दुर्गा पंच रूपा
नाम जप अनूपा
बने रंक भूपा
शुभ्र वर्ण वाली, श्वेत बसन वाली
भर दे भर दे जगत आनन्द मैया।
हे शक्ति दायिनी
पुष्कल फल दानी
मोक्ष सिद्धि दायिनी
सुख शान्ति दानी
जो भी आया, बिन मांगे पाया
अपने भक्तों की प्यारी पसंद मैया।

कूष्मांडा

जय जय जय कूष्मांडा माता।
जग जननी ब्रह्माण्ड विधाता॥

चक्र, गदा, कमण्डल वाली
धनुष बाण, कमल दल वाली
अमृत कलश जयमाला धारी
सिंह सवार कूष्मांड बलि प्यारी
आदि शक्ति माते जग सर्जक
रोग शक्ति मां मुक्ति प्रदाता।
ऋदि-सिद्धि आरोग्य प्रदानी
आयु, शक्ति, यश, भक्ति दानी
रविमण्डल में रूप विराजे
अंधियारे पे उजाला साजे
आधि व्याधि सब डर के भागे
जो भी शरण तुम्हारी आता !

सकल जगत में रूप तुम्हारा
तुम हो तेज पुंज की धारा
भक्त अचल मन आया द्वारे
कर दे पूरन काज हमारे
तेरी भक्ति की राह चले जो
जग में सब सुख वह पा जाता।

चन्द्रघण्टा

सिहं वाहिनी चारू छटा माँ
तुम दुर्गा की शक्ति तृतीया
हे ! दस भुजी चन्द्रघण्टा मां।

धनुषबाण जपमाल कमंडल
गदा त्रिशूल तलवार कमल
अर्द्ध चन्द्र माथे पर सोहे
भव्य मुकुट भक्ती मन मोहे
सुबरन अंग लाल चूनर में,
पावन रूप सिंगार सजा मां।

चंडध्वनि से दानव डरते
किन्तु भक्त सब निर्भय रहते
तेरा पुजारी पूजा जाता
बिन मांगे यश वैभव पाता
पल में आसन छोड़ के धायी,
भक्तों ने जब नाम रटा मां।

विनती यही अभी दर्शन दे
सदा सजग रहने का मन दे
लोक और परलोक बना दे
भव बाधा से मुक्त करा दे
तेरे दरस बिन रहा न जाये
जिद्दी बालक यहीं डटा मां।

सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

ब्रह्मचारिणी

मैया तेरी अनुपम माया
भक्त आज शरण में आया
ब्रह्मचारिणी रूप सुहाया
कर दे अपनी दया का साया

सुन उपदेश नारद मुनिवर का
ज्योतिर्मय लै रूप अनूपा
सहा शीत बरखा अरू धूपा
साक्षात् माँ ब्रह्म स्वरूपा
दुर्गम पथ से चलते जाना
भक्तों को तप मार्ग दिखाया !

दायें हाथ लिए जपमाला
बायां हाथ कमण्डल वाला
मुक्त केश बना छवि आला
धवल बसन में रूप निराला
मनोकामना पूरन करने
अपना तपसी रूप बनाया।

वर्ष हजार फल मूल बिताया
बरस एक सौ साग ही खाया
खुले गगन हर कष्ट उठाया
बेलपत्र खा शिव को मनाया
निर्जल और निराकारी रह
नाम अपर्णा मातु कहाया।

अलख तपस्या देख तुम्हारी
ब्रह्मा बोले मातु हमारी
साक्षात तप सम मनहारी
तुम्हें वरेंगे अब त्रिपुरारी
कठिन व्रती नवरूप अनूठा
मातु नाम फिर उमा धराया।

शैलसुता

चहुँ दिसा गूँजें जैकार मैया,
सज रहा रूप दरबार मैया
कर दो जगत उद्धार मैया
शैल सुता सुन लो पुकार मैया

आओ बैल की सवारी
दांये कर त्रिशूल धारी
बायें कमल पुष्प धारी
माथे मुकुट मनोहारी
सभी की पालनहार मैया !

दक्ष यज्ञ में पति निरादर
किया आप को भस्म जलाकर
जन्मी हिम के आलय आकर
नाम हेमवती कहलाकर
किया गर्व देव संहार मैया !

पतिव्रता शिवशंकर प्यारी
शक्ति सरूपा भक्त पियारी
पार्वती मैना की दुलारी
भक्त आज तुमपे बलिहारी
दया का लगा अम्बार मैया !

गणेश-लक्ष्मी वन्दना

आओ आओ रे ! आओ आओ रे !
आओ रे ! आओ रे ! गणराज
संग माँ लक्ष्मी पियारी।
कर दो मालामाल
जगे दीवाली हमारी॥

ऋद्धी को लाना सिद्धी को लाना,
गणपति मूषक पे तुम आना,
कंगाली सब दूर भगाना,
उल्लू पे सवार माँ आना,

निनान्बे के चक्कर में
पड़ी रे दुनिया सारी।

चाम जाय पर दाम न जाये,
उस पे कृपा सदा बरसाये,
खर्चवाह से दूरी रखती,
कंजूसों की झोली भरती,
सेंसेक्स से रूठी मैया
गिर गये शेयर भारी !

लम्बोदर को मोदक प्यारा,
माँ को मूंजी भक्त पियारा,
सरस्वती सुत आज पुकारे,
गणेश-लक्ष्मी बनो सहारे,

करो नज़र इक बार
कलम का आया पुजारी !

मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008

हवा गुदगुदी कर गई...

हवा गुदगुदी कर गई, हँसा आम का बौर।
मौसम के सिर पर सजा, फिर फागुन का मौर

शाखों के दिल पे लगे, पछुआ की हर बात।
जैसे कमसिन उम्र की, चितवन के आघात।।

सूने तरू की बांह में, पहनाए हर बार।
रंग-बिरंगी चूड़ियां, फागुन का मनिहार।।

चैत चाँद की चाँदनी, हर सिगांर के फूल।
नैनों से मोती झरें, सौगन्धो की भूल।

नवल वधू-सी चाँदनी, और विदाई राग।
मौसम के वर को मिला, अंचर धराई फाग।।

जोगन बन के चाँदनी, चाँद का चंग बजाय।
नील-गगन की छांव में, गीत फागुनी गाय।।

अमराई की गोद में, मिट्ठू पर खुजलाय।
कथा होलिका दहन की, मैना उसे सुनाए।।

फटे दूध से हो चले...

फटे दूध से हो चले, आज रक्त सम्बन्ध।
भावों से गढ़ने लगे, नये-नये सम्बन्ध।।

तेग और शमशीर से, ज्यादा तीखी धार।
कान सुने पर दिल सहे, बातों की तलवार।।

झूठे नातों की नज़र, नहीं हुए नीलाम।
किन्तु नेह की हाट में, बिके छदाम-छदाम।।

सदा अकेले देख कर, बोले मेरे लाल।
बड़े-बड़ो की भीड़ में, चले अजनबी चाल।।

ज़हर घोल जरा कूप में, कौन गया निर्बन्ध।
हुआ रक्त से भी अधिक, मुँह बोला सम्बन्ध।।

रे‍‍‍‍! मन क्यों, भटका फिरे, जग में बन कर मूढ़।
अपनी खुशियाँ आप में, ढूंढ़ सके तो ढूंढ़।।

कुछ मत पूछो हाल किसी का...

कुछ मत पूछो हाल किसी का
उलझा हुआ सवाल किसी का।।
बहक न जाना पल भर छू के,
महका हुआ रूमाल किसी का।
खुशफहमी मत कभी पालना,
पा के ज़रा विसाल किसी का।
करवट में ही रात कटेगी,
आये अगर खयाल किसी का।
किसी की साजिश का ये नतीज़ा,
झेले शहर बवाल किसी का।
देख के उंगली उठा रहे सब,
खिला कंवल है ताल किसी का
भोले हो सर पे मढ़ देगी,
दुनिया ये जंजाल किसी का।
शोहरत का हकदार बना है,
किस्मत देख कमाल किसी का

शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

राहें-तरक्की से, गुज़रा वो ज़माना...

राहे-तरक्की से, गुज़रा वो ज़माना है।
फिर भी कुछ लोगों का, फुटपाथ ठिकाना है।।
बेवा की ज़मी हड़पी, कानून का मुजरिम है,
पर आज की संसद में, अन्दाज़ शहाना है।
कहीं पीना बुराई है, कहीं शौक अमीरों का,
हर ऐब, हुनर उनका, कहता ये ज़माना है।

दोस्त ही जब, दुश्मनी का हक अदा करने लगे।
क्या करे हम दोस्ती के, नाम से डरने लगे।।
अपने पराए में, फ़रक, करना बहुत मुश्किल जनाब़
दौरे-हाज़िर में सभी, चेहरा कई रखने लगे।
उनको बगले झांकते, देखा मुसीबत में हुजूर,
जो हमारी हाँ में हाँ, थे कभी करने लगे।

जो वक्त के हिसाब से, बदल नहीं सके।
कभी जहाँ के साथ-साथ, चल नहीं सके।।
हँसीं की मिसाल हुए, कहलाए बैकवर्ड,
पर अपने दायरे से वो निकल नहीं सके।
तमगा मिला कि साला, ईमानदार है,
फिर भी वो अपनी रूह से निकल नहीं सके।

उंगली पकड़ जिसको, चलना सिखाया।
वही आज देखो मुकाबिल है आया।।
सलामत रहे ये है दिल की दुआ,
होम करते भले हाथ अपना जलाया
किस्मत के धनी हैं, वो इस दौर में,
सर पे है जिनके, बुजुर्गों का साया।

दर-दर रोज भटकना किस्मत...

दर-दर रोज भटकना किस्मत,
पल-पल जीना मरना किस्मत।
पानी के जुगाड़ में अक्सर,
कुंआ खोदते रहना किस्मत।
नहीं ठिकाना कल का कोई,
बस अपने पर हंसना किस्मत।
उस आतिशी नजर ने, ढाया है ये कैसा कहर
कि पता दर-दर पूछता, दिल हाथ में ले के शहर।
किसी सूरत गिरे दीवार, ये कोशिश हमारी है
किसकी साजिश है कि हंगामा रहे अक्सर।
एक चने की दाल हैं दो, ये कभी सोचा है क्‍या
घोलता रहता फिजा में, सिर्फ नफरत का जहर।
एक तरफा उल्‍फत का रिश्ता, जब से जाना तोड़ दिया
धीरे-धीरे उसके घर भी, आना जाना छोड़ दिया।
दिल सादा अब धुला धुला सा, खादी जैसे कलफ लगी
मंजिल की खातिर राही ने, पथ को सुहाना मोड़ दिया।
गाहे-ब-गाहे रस्ते में, नजरें यूं टकराती हैं
कुदरत के हाथों ने ज्‍यूं, टूटा आईना जोड़ दिया।
दर्द की अठखेलियां, अब तो सही जाती नहीं
खामोशियों की दास्तां, हरगिज कहीं जाती नहीं।।
सांस का ये कर्ज चुकता हो, कहां किसको पता,
इसकी चर्चा आम है, जो की कभी जाती नहीं।
जिन्‍दगी ताउम्र औरों के लिए जीता रहा
अपनों की खुदगर्जियां, अब और जी जाती नहीं।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

अमावस

पढ़े ककहरा खिली अमावस

खोले स्याह किताब।

मुँह बोले माई के बिरना

दिखते नहीं जनाब।।

किसके कजरौटे से बिखरा

इत्ता सारा काजल,

करिया भौजी दिशा को जायें

थाम नंद का आंचल,

मुनियां परछांई को पूछे

देवे कौन जवाब़?

पुतरी ने औकात आंक ली

पसरी देखी कालिख,

डहर, मेड़, पगडंडी गुमसुम

सन्नाटा है मालिक,

कौन रात की बही टटोले

मुडिया लिखा हिसाब।

काली चौरा ठुम्मुक-ठुम्मक

करें घिया की बाती,

चिहुंके पीपल वाला पांखी

जैसे गली बिसाती,

अंधियारा हो चुका सयाना

बुने सुनहरा ख्वाब!

हम शहीदों की, शहादत का...

(1)

हम शहीदों की, शहादत का चलन भूल गये।

खुदपरस्ती के लिए, हुब्बे-वतन भूल गयें।।

ज़िद में हाय! बदन, बाँट लिया जननी का,

बिस्मिल-अश्फाक के, ख़ाबों का चमन भूल गयें।

बारहा मिलते रहें, ईद और होली पर,

इक इमारत के लिए, गंगों- जमन भूल गये।

(2)

न तुम्हारे दर से गुज़रे हम, न हम तेरी डगर जायें।

तुम्हारे ग़म के मारे हम बता दो फिर किधर जायें।।

हमारा आना ही आखिर, तुम्हें क्यों कर अखरता है

नहीं है रोक उन पर क्यों, जों घर शामो सहर जायें

यहाँ तुम मिल नहीं सकते, वहाँ फिर क्या मिलोगे तुम

दिखा दो राह कोई ऐसी, कि दो आलम गुज़र जायें।

(3)

कुछ मत पूछो हाल किसी का।

उलझा हुआ, सवाल किसी का।।

बहक न जाना, पल भर छू के,

महका हुआ, रूमाल किसी का।

शोहरत का, हकदार बना है,

किस्मत देख, कमाल किसी का।

(4)

कोई उसको जान न पाया।

कोशिश की पहचान न पाया।।

कभी नहीं बर्तन टकराये,

ऐसा कोई मकान न पाया।

सबको बराबर करने निकला

खुद जो उँगली समान न पाया।

आते-जाते मुलाकात...

आते-जाते मुलाकात होती रहेगी।

मोहब्बत की दो बात होती रहेगी।।

कभी शेरो-नग़मा, गज़ल के बहाने,

सुबह-शाम दिन-रात होती रहेगी।

चलो झोपड़ी का, अंधेरा मिटाएं,

दीवाली, शबेरात, होती रहेगी।

 

यूं ही इक गज़ल क्या सुनाने लगे।

गुज़रे दिन सबको अपने सताने लगे।।

पलक एकटक, साकिया की उठी,

रिन्द नज़रो से चुस्की लगाने लगे।

ज़ाम का नाम सुन के, सधे पांव भी,

चलते-चलते मियां, डगमगाने लगे।

 

जब से उसका साथ मिला है।

जीने का अन्दाज मिला है।।

सुर्ख़ प्यार की, भीनी खुश्बू,

रूह को इक अहसास मिला है।

ठनगन करती नहीं जिन्दगी,

ख्वाबों को परवाज़ मिला है।

 

वक्त से करते क्या गिला यारों।

वो बड़ी देर से मिला यारों।।

उसके आते बदल गयी दुनिया,

घर लगे अब, खिला-खिला यारों।

उसकी सोहबत को तरसा किये,

दो क़दम साथ जो चला यारो।

खिली, खिली-सी चाँदनी...

खिली, खिली-सी चाँदनी खुला-खुला यें आसमां।

रात की कलाइयों पे, सज रही है कहकशां।।

सारी क़ायनात मानो, दूध से नहा उठी,

चाँद की मुंडेर पर, हँसी जो दूधिया शमां।

ये नर्म-नर्म खुश्बुएं, नहाई याद प्यार की,

भीगे रसीले होठ वाली, रातरानी मेहरबां।

 

पांवो सफर हाथ में, उजड़ा नसीब था।

तन्हा था मगर भीड़ मे, अपने करीब था।।

कोशिशें नाकामियों का, पांव छू के रह गयी,

मुर्दा क़लम से लिक्खा, शायद नसीब था।

रंगना जमाने में, यार रह गया कोरा,

नाकाम जिन्दगी का, नमूना अजीब था।

 

एक जरा-सी बात हुई, बदनाम हो गये।

हम ग़ालिब के टूटे, खाली जाम हो गये।।

ऐसा कुछ सोचा तो नहीं था, उलफत मे,

कैसे आखिर फिर बेअदब सलाम होगये।

सपने गिरवी हुए, धरोहर टूटी उम्मीदें,

सोने से पल कौड़ी और छदाम हो गये।

 

न पूछो किस तरह गुजरी, है ये बरसात की रातें।

किसी की याद में गुज़री, है ये बरसात की रातें।।

कई विपदा लिए आई, लगाती आग सीनें में,

भरी एक दर्द की गगरी, है ये बरसात की रातें।

ज़मीं से आसमां तक, रोशनाई-सी बिखेरी है,

विरह के पीर-सी बिखरी, है ये बरसात की रातें।

गुरुवार, 18 सितंबर 2008

छोरा बड़ा मुतफन्‍नी निकला...

छोरा बड़ा मुतफन्‍नी निकला।

रंग मारता था रुपये की

लेकिन यार चवन्‍नी निकला।।

 

उसकी बातें हवा-हवाई

जैसे कानों में शहनाई

हर परिचय का बड़ा हिसाबी

चिल्‍लर-चिल्‍लर आना पाई

सरे आम वो धूल झोक कर

देखो काट के कन्‍नी निकला।

 

सूरत से महफिल का लुटेरा

 मुस्‍की में सबका मन फेरा

 काम बना अपना चुटकी में

 घर आंगन कर लिया सबेरा

 इस्‍तेमाल किया सीढ़ी-सा

रिश्‍ता कतर कतन्‍नी निकला। 

आई जो बरखा…

आई जो बरखा, बकंइयां-बंकइयां।
चिल्लाए खेत रे, गोंसइयां-गोंसइया।।

होंठ भीगे धरती के

झूमे गाय बछरू,

पन्नि-पन्नि बोल सजे

घनन-घनन घुंघरू,

बेवाई सहेजे, किसान पंइया-पंइया।

बिरवाही डहर चलीं

गुमसुम कुदाले,

गौरइया बोले है

धूल क्यों उछाले,

मेड़-डाँड़ मस्ती में, यार ठंइयां-ठंइया।

पलिहर की आस जगी

जरई का खेत बने,

बगुलों के भाग जगे

गिद्ध बाज बने-ठने,

सोंधी सी खुश्बू, भोगे घमछईयां।

सुधियों को सौगात मिली है...

सुधियों को सौगात मिली है,

आंसू के कुछ कन।

हुआ जाता बनवासी मन।।

इन्‍द्रधनु से बीते पल साथ,

विरह के घन में निकले आज,

स्‍वप्‍न के नील-गगन में प्राण,

भटकता फिरे पखेरू आज,

 

दृष्टि से परे वही प्रतिबिम्‍ब

महक जाता जिससे दर्पन।

 

आस के आँचल पर एक फूल

टाँकती है कर्पूरी साध,

शून्‍य में कहीं पिरहिणी प्रीति

कसक दे जाती है एकाध,

 

महावर रचती पीड़ा पाँव

तोड़ती रह-रह यादें तृन।

बुधवार, 3 सितंबर 2008

हमने जीने के भी, आदाब...

हमने जीने के भी, आदाब निराले देखे।

जैसे फुटपाथ की, दूकां पे रिसाले देखे।।

जिन्‍दगी जब भी, सलीबों के करीब आई है,

आस्‍तीं से कई सांपों का मुंह निकाले देखे।

टी-स्‍टाल, कहवा घर व होटलों में अक्‍सर,

मुब्तिला बातों में बस चाय के प्‍याले देख।


तमाशा है चन्‍द पल का, ठहर कर के देखिये।

मजमें में तनिक देर, गुजर करके देखिये।।

साहिल से गहराई, नहीं अन्‍दाज सकेंगे,

हुजूर समन्‍दर में, उतर करके देखिये।

अजान की सूरत यहां, उट्ठी हैं सदाएं,

एक बार मेरे साथ, सफर करके देखिये।


लिये वायदे तरह-तरह के, फिर नारों के शोर।

चोला बदल-बदल फिरते हैं, उजले आदमखोर।।

बजा रहे सब के सब यारों, अपनी ढपली अपना राग,

किसको फिक्र है देखे प्‍यारे, देश की दुखती पोर।

संभल जाओ, ऐ देशवासियों, वरना हाथ मलोगे,

फिर आई है हाथ तुम्हारे, इनकी नस कमजोर।


गौर फरमाएं एकाध बार चेहरों पर।

मिलेंगे अफसाने हजार चेहरों पर।।

मेकअप से छिपी है, सलवटें इनकी,

पड़ी है वक्‍त की मार चेहरों पर।

जिसे देखो वही, बर्थ-डे मनाता है,

फकत उम्र बनाए है, मजार चेहरों पर।

रविवार, 3 अगस्त 2008

गोरी अब के सवनवां...

गोरी अब के सवनवां दगा दइ गै राम।

पीर पूछौ न यक से सवा कइ गै राम।।


दिनै-दिन मेघा आवैं अकासे,

बरसे बिना जांय दइ-दइ कै झांसे,

गिनि-गिनि तरइया भोरहरी निहारी

कल्झि-कल्झि जाय रे भुंइयां तरा से,

पुरवा संग बदरवा, दफा होई गै राम।


पानी बिना पियरानी बैठाई बेरन,

पियासा मुरैला, मुरैली सगर वन,

रिमझिम फुहारै, भूलीं डगरिया

बहकी बयरिया, धूरि उड़ै सेरन,

सीपी कै सपनवा, हवा हौइ गै राम।

बालू फिलोलै, बौलै टिपोरा,

भुंइ कहै घामे से, खीस न निपोरा,

खेत, मेड़, गंउवा, सेवान मुंह लटका

बरखा कै बूंदी लागै टिकोरा,

सूखा के रसोइयां नवा होइ गै राम।

चरवाहा

उठ भिनसारे खूंटा धाये,

नित चरवाहा ढोर चराये

हँसी बिखेरे टका छदाम

सबके आगे राम-राम।

 

पीर करेजे की मुँह बाये

पग के छाले सीस नवाये

नैनों के परकोटे में अब

अंजुरी भर-भर सरसों आये

जी का दुखड़ा जेठ का घाम।

 

सुख की खातिर हाथापाई

दुख उसका मुंहबोला भाई

तोला-माशा रत्ती-रत्ती

उम्र चुकाना पाई-पाई

पेट की रोटी चारोधाम।


चरागाह में आम की छुइयां

बातें करता जैसे टुइयां

सुबह-शाम दोपहरी जीता

सपनों के डाले गलबहियां

लाठी-बंशी आठोयाम।

अभी गये तुमको...

अभी गये तुमको दो-चार दिन हुए।

लगता है जैसे, हजार दिन हुए।।

 

दिन का रंग उड़ा-उड़ा, शामें घबराई सी,

रातों की तड़पन से, सुबहें मुरझाई-सी,

पूछो न दुःख के, अम्बार दिन हुए।

 

मौसम के खाते मे, खुश्बू का नाम है,

आँखों से ओझल, बस फूलों का ग्राम है,

हँसती बहार के, फरार दिन हुए।

 

चुभती-सी दर्पन में याद की पिनें,

उंगलियों पे कब तक, हम पल-घड़ी गिनें,

दुखिया के मन की, पुकार दिन हुए।

गुरुवार, 10 जुलाई 2008

है कामयाब इस दुनिया में...

है कामयाब इस दुनिया में, जो सबसे बड़ा भौकाली हो।

हरदम लाखों की बात करे, चाहे जेब भले ही खाली हो।।

 

न करना तो सीखा ही नहीं, और लम्बी फेंकने मे शातिर,

खाली बातो से गल्ल करें, हो अपने मतलब में माहिर,

फितरत से तोताचश्मी हो, चेहरे पे हंसी की लाली हो।

 

चमक-दमक वालों खातिर, वो नजरें बिछाएं रहता है,

बेसिर-पैर की बातों मे, औरों को फंसाए फिरता है,

पडें काम तो हाँजी हाँ, पीछे होठों पर गाली हो

 

अरसा बीते आजाद हुए, पर वही गरीबी बेकारी,

बड़बोले नेता की आदत, वादों के पीछे मक्कारी,

मंत्री बन उसका काम करें, पहुंचाये जो भारी डाली हो।

 

जो जहाँ वहीं वह लूट रहा, माफिया राहेबर या दफ्तर,

अब जात-पांत के चक्कर में, जनता की हालत है पंचर,

फिर रामराज्य कैसे आये, जब संसद की रंगत काली हो।