रविवार, 3 अगस्त 2008

चरवाहा

उठ भिनसारे खूंटा धाये,

नित चरवाहा ढोर चराये

हँसी बिखेरे टका छदाम

सबके आगे राम-राम।

 

पीर करेजे की मुँह बाये

पग के छाले सीस नवाये

नैनों के परकोटे में अब

अंजुरी भर-भर सरसों आये

जी का दुखड़ा जेठ का घाम।

 

सुख की खातिर हाथापाई

दुख उसका मुंहबोला भाई

तोला-माशा रत्ती-रत्ती

उम्र चुकाना पाई-पाई

पेट की रोटी चारोधाम।


चरागाह में आम की छुइयां

बातें करता जैसे टुइयां

सुबह-शाम दोपहरी जीता

सपनों के डाले गलबहियां

लाठी-बंशी आठोयाम।

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