रविवार, 3 अगस्त 2008

गोरी अब के सवनवां...

गोरी अब के सवनवां दगा दइ गै राम।

पीर पूछौ न यक से सवा कइ गै राम।।


दिनै-दिन मेघा आवैं अकासे,

बरसे बिना जांय दइ-दइ कै झांसे,

गिनि-गिनि तरइया भोरहरी निहारी

कल्झि-कल्झि जाय रे भुंइयां तरा से,

पुरवा संग बदरवा, दफा होई गै राम।


पानी बिना पियरानी बैठाई बेरन,

पियासा मुरैला, मुरैली सगर वन,

रिमझिम फुहारै, भूलीं डगरिया

बहकी बयरिया, धूरि उड़ै सेरन,

सीपी कै सपनवा, हवा हौइ गै राम।

बालू फिलोलै, बौलै टिपोरा,

भुंइ कहै घामे से, खीस न निपोरा,

खेत, मेड़, गंउवा, सेवान मुंह लटका

बरखा कै बूंदी लागै टिकोरा,

सूखा के रसोइयां नवा होइ गै राम।

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