बुधवार, 3 सितंबर 2008

हमने जीने के भी, आदाब...

हमने जीने के भी, आदाब निराले देखे।

जैसे फुटपाथ की, दूकां पे रिसाले देखे।।

जिन्‍दगी जब भी, सलीबों के करीब आई है,

आस्‍तीं से कई सांपों का मुंह निकाले देखे।

टी-स्‍टाल, कहवा घर व होटलों में अक्‍सर,

मुब्तिला बातों में बस चाय के प्‍याले देख।


तमाशा है चन्‍द पल का, ठहर कर के देखिये।

मजमें में तनिक देर, गुजर करके देखिये।।

साहिल से गहराई, नहीं अन्‍दाज सकेंगे,

हुजूर समन्‍दर में, उतर करके देखिये।

अजान की सूरत यहां, उट्ठी हैं सदाएं,

एक बार मेरे साथ, सफर करके देखिये।


लिये वायदे तरह-तरह के, फिर नारों के शोर।

चोला बदल-बदल फिरते हैं, उजले आदमखोर।।

बजा रहे सब के सब यारों, अपनी ढपली अपना राग,

किसको फिक्र है देखे प्‍यारे, देश की दुखती पोर।

संभल जाओ, ऐ देशवासियों, वरना हाथ मलोगे,

फिर आई है हाथ तुम्हारे, इनकी नस कमजोर।


गौर फरमाएं एकाध बार चेहरों पर।

मिलेंगे अफसाने हजार चेहरों पर।।

मेकअप से छिपी है, सलवटें इनकी,

पड़ी है वक्‍त की मार चेहरों पर।

जिसे देखो वही, बर्थ-डे मनाता है,

फकत उम्र बनाए है, मजार चेहरों पर।

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