शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

आते-जाते मुलाकात...

आते-जाते मुलाकात होती रहेगी।

मोहब्बत की दो बात होती रहेगी।।

कभी शेरो-नग़मा, गज़ल के बहाने,

सुबह-शाम दिन-रात होती रहेगी।

चलो झोपड़ी का, अंधेरा मिटाएं,

दीवाली, शबेरात, होती रहेगी।

 

यूं ही इक गज़ल क्या सुनाने लगे।

गुज़रे दिन सबको अपने सताने लगे।।

पलक एकटक, साकिया की उठी,

रिन्द नज़रो से चुस्की लगाने लगे।

ज़ाम का नाम सुन के, सधे पांव भी,

चलते-चलते मियां, डगमगाने लगे।

 

जब से उसका साथ मिला है।

जीने का अन्दाज मिला है।।

सुर्ख़ प्यार की, भीनी खुश्बू,

रूह को इक अहसास मिला है।

ठनगन करती नहीं जिन्दगी,

ख्वाबों को परवाज़ मिला है।

 

वक्त से करते क्या गिला यारों।

वो बड़ी देर से मिला यारों।।

उसके आते बदल गयी दुनिया,

घर लगे अब, खिला-खिला यारों।

उसकी सोहबत को तरसा किये,

दो क़दम साथ जो चला यारो।

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