आई जो बरखा, बकंइयां-बंकइयां।
चिल्लाए खेत रे, गोंसइयां-गोंसइया।।
होंठ भीगे धरती के
झूमे गाय बछरू,
पन्नि-पन्नि बोल सजे
घनन-घनन घुंघरू,
बेवाई सहेजे, किसान पंइया-पंइया।
बिरवाही डहर चलीं
गुमसुम कुदाले,
गौरइया बोले है
धूल क्यों उछाले,
मेड़-डाँड़ मस्ती में, यार ठंइयां-ठंइया।
पलिहर की आस जगी
जरई का खेत बने,
बगुलों के भाग जगे
गिद्ध बाज बने-ठने,
सोंधी सी खुश्बू, भोगे घमछईयां।
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