गुरुवार, 18 सितंबर 2008

छोरा बड़ा मुतफन्‍नी निकला...

छोरा बड़ा मुतफन्‍नी निकला।

रंग मारता था रुपये की

लेकिन यार चवन्‍नी निकला।।

 

उसकी बातें हवा-हवाई

जैसे कानों में शहनाई

हर परिचय का बड़ा हिसाबी

चिल्‍लर-चिल्‍लर आना पाई

सरे आम वो धूल झोक कर

देखो काट के कन्‍नी निकला।

 

सूरत से महफिल का लुटेरा

 मुस्‍की में सबका मन फेरा

 काम बना अपना चुटकी में

 घर आंगन कर लिया सबेरा

 इस्‍तेमाल किया सीढ़ी-सा

रिश्‍ता कतर कतन्‍नी निकला। 

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