मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008

फटे दूध से हो चले...

फटे दूध से हो चले, आज रक्त सम्बन्ध।
भावों से गढ़ने लगे, नये-नये सम्बन्ध।।

तेग और शमशीर से, ज्यादा तीखी धार।
कान सुने पर दिल सहे, बातों की तलवार।।

झूठे नातों की नज़र, नहीं हुए नीलाम।
किन्तु नेह की हाट में, बिके छदाम-छदाम।।

सदा अकेले देख कर, बोले मेरे लाल।
बड़े-बड़ो की भीड़ में, चले अजनबी चाल।।

ज़हर घोल जरा कूप में, कौन गया निर्बन्ध।
हुआ रक्त से भी अधिक, मुँह बोला सम्बन्ध।।

रे‍‍‍‍! मन क्यों, भटका फिरे, जग में बन कर मूढ़।
अपनी खुशियाँ आप में, ढूंढ़ सके तो ढूंढ़।।

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