मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008

हवा गुदगुदी कर गई...

हवा गुदगुदी कर गई, हँसा आम का बौर।
मौसम के सिर पर सजा, फिर फागुन का मौर

शाखों के दिल पे लगे, पछुआ की हर बात।
जैसे कमसिन उम्र की, चितवन के आघात।।

सूने तरू की बांह में, पहनाए हर बार।
रंग-बिरंगी चूड़ियां, फागुन का मनिहार।।

चैत चाँद की चाँदनी, हर सिगांर के फूल।
नैनों से मोती झरें, सौगन्धो की भूल।

नवल वधू-सी चाँदनी, और विदाई राग।
मौसम के वर को मिला, अंचर धराई फाग।।

जोगन बन के चाँदनी, चाँद का चंग बजाय।
नील-गगन की छांव में, गीत फागुनी गाय।।

अमराई की गोद में, मिट्ठू पर खुजलाय।
कथा होलिका दहन की, मैना उसे सुनाए।।

1 टिप्पणी:

khulee khinki ने कहा…

waah betebjee kya kavita likhi hai. man ko sachmuch gudduda gai.
mukesh