मंगलवार, 25 नवंबर 2008

कालरात्रि

आ ! शक्ति सप्तभ्यंकरी।
मां कालरात्रि शुभंकरी॥

हस्त तीक्ष्ण कटार वाली
लौह कंटक धार वाली
त्रिनेत्री हे अभय दानी
भक्त हित कर अपर दानी
कण्ठ विधुत माल शोभित
रक्तिम चुनर बाघम्बरी।

जब दानवी परिवृत्ति हरषे
तव नासिका ज्वालाग्नि बरसे
सब भूत-प्रेत पिशाचिनी
मां भक्त भय दुःख वारिणी

भुज चार गर्दभ वाहना
अरू वेश भूषा भयंकरी।

मन टिके चक्र सहस्त्रार
खुल जाए सिद्धि समस्त द्वार
मिलो मां उर की ये पुकार
पुण्य फल दे दो अपार

कृष्ण ऱूपा केश बिखरे
शाकम्भरी अभयँकरी।

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