फिर भी कुछ लोगों का, फुटपाथ ठिकाना है।।
बेवा की ज़मी हड़पी, कानून का मुजरिम है,
पर आज की संसद में, अन्दाज़ शहाना है।
कहीं पीना बुराई है, कहीं शौक अमीरों का,
हर ऐब, हुनर उनका, कहता ये ज़माना है।
दोस्त ही जब, दुश्मनी का हक अदा करने लगे।
क्या करे हम दोस्ती के, नाम से डरने लगे।।
अपने पराए में, फ़रक, करना बहुत मुश्किल जनाब़
दौरे-हाज़िर में सभी, चेहरा कई रखने लगे।
उनको बगले झांकते, देखा मुसीबत में हुजूर,
जो हमारी हाँ में हाँ, थे कभी करने लगे।
जो वक्त के हिसाब से, बदल नहीं सके।
कभी जहाँ के साथ-साथ, चल नहीं सके।।
हँसीं की मिसाल हुए, कहलाए बैकवर्ड,
पर अपने दायरे से वो निकल नहीं सके।
तमगा मिला कि साला, ईमानदार है,
फिर भी वो अपनी रूह से निकल नहीं सके।
उंगली पकड़ जिसको, चलना सिखाया।
वही आज देखो मुकाबिल है आया।।
सलामत रहे ये है दिल की दुआ,
होम करते भले हाथ अपना जलाया
किस्मत के धनी हैं, वो इस दौर में,
सर पे है जिनके, बुजुर्गों का साया।