मंगलवार, 25 नवंबर 2008

कालरात्रि

आ ! शक्ति सप्तभ्यंकरी।
मां कालरात्रि शुभंकरी॥

हस्त तीक्ष्ण कटार वाली
लौह कंटक धार वाली
त्रिनेत्री हे अभय दानी
भक्त हित कर अपर दानी
कण्ठ विधुत माल शोभित
रक्तिम चुनर बाघम्बरी।

जब दानवी परिवृत्ति हरषे
तव नासिका ज्वालाग्नि बरसे
सब भूत-प्रेत पिशाचिनी
मां भक्त भय दुःख वारिणी

भुज चार गर्दभ वाहना
अरू वेश भूषा भयंकरी।

मन टिके चक्र सहस्त्रार
खुल जाए सिद्धि समस्त द्वार
मिलो मां उर की ये पुकार
पुण्य फल दे दो अपार

कृष्ण ऱूपा केश बिखरे
शाकम्भरी अभयँकरी।

गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

सिद्धिदात्री

जै जै सिद्धिदात्री जय माँ
सिद्धि अष्टदश दात्री जय मां

शंख, चक्र, कर कमल सुहावन
गदा पद्म आसन मन भावन
सुर नर मुनि दानव सब पूजें
आपस में तेरे बल जूझे
बने अर्द्धनारीश्वर शिव जी
पाकर कृपा तुम्हारी जय मां।

सच्चे मन से जिसने ठाना
कठिन नहीं है मां को पाना
मां की कृपा भक्त पर घूमें
उसका चरण सफलता चूमें
नवीं शक्ति दुर्गामाता की
सिंह सवार विधात्री जय मां।

जो नित मां की करे उपासना
समझो पूरी सकल कामना
पल भर मां से लगन लगाये
सुख उसके घर दौड़ के आये
है प्रसन्न होने की देरी
करूणा सिन्धु दात्री जय मां।

महागौरी

कलियुग काल रूप में आया।
दया करो महागौरी मां॥

शिव को पाना हुई समस्या
की पार्वती ने घोर तपस्या
गौर वर्ण हुआ जब काला
शिव ने गंगा जल फिर डाला
हुई चारू चन्द्र मय आभा
नाम महागौरी कहलाया।

कर त्रिशूल शिव शस्त्र उठाये
डिमिक डिमिक डिम डमरू बजायें
बैल सवार अभय कर दानी
निज भक्तों हित मां वरदानी

कुन्द पुष्प-सा वस्त्र भूषण
मां का रूप जगत को भाया।

अष्ट शक्ति मां चतुर्भुजा मां
शान्त मना क्या रूप सजा मां
जो भी सच्चे मन से जपते
जग में कार्य अंसम्भव करते
सरिता – सागर सा मिल मां से
बदल जायेगी जीवन काया।

कात्यानी

चतुर्भुजी कात्यायनी जै जै।
षष्ठी रूप भवानी जै जै,
जय हो जय कात्यायनी जै जै॥
ऋषि की मां से लगन लगी जब
परा अम्बा की शक्ति जगी तब
कन्या बनी भगवती माता
बने कात्यायन जी फिर ताता

तीन देव अंश अवतारी
महिषासुर संहारनी जै जै।

एक हाथ में कमल सुसाजे
दूजे में तलवार विराजे
तीजा हाथ अभय का दानी
चौथा भक्तों हित वरदानी
स्वर्ण मुकुट मकराकृत कुंडल
कल्यानी सिंह वाहिनी जै जै।

पति अनुरूप कृष्ण जब सूझा
यमुना तट गोपियों ने पूजा
हम भी तेरे बने पुजारी
सुन ले मैया अरज हमारी

दरस बिना आँखें अब तरसे
ब्रज अधिष्ठात्री ठानी जै जै।

स्कन्दमाता

जै हो जै हो जय हो स्कन्द मैया।
कर दे भक्तों की शक्ति बुलन्द मैया॥
कर में कमल लाल
अंक कार्तिकेय लाल
पद्म आसन कमाल
सिर पे मुकुट विशाल
सुन ले पुकार, आ शेर पे सवार
बिखेर दे दया की सुगन्ध मैया।
चार भुज स्वरूपा
दुर्गा पंच रूपा
नाम जप अनूपा
बने रंक भूपा
शुभ्र वर्ण वाली, श्वेत बसन वाली
भर दे भर दे जगत आनन्द मैया।
हे शक्ति दायिनी
पुष्कल फल दानी
मोक्ष सिद्धि दायिनी
सुख शान्ति दानी
जो भी आया, बिन मांगे पाया
अपने भक्तों की प्यारी पसंद मैया।

कूष्मांडा

जय जय जय कूष्मांडा माता।
जग जननी ब्रह्माण्ड विधाता॥

चक्र, गदा, कमण्डल वाली
धनुष बाण, कमल दल वाली
अमृत कलश जयमाला धारी
सिंह सवार कूष्मांड बलि प्यारी
आदि शक्ति माते जग सर्जक
रोग शक्ति मां मुक्ति प्रदाता।
ऋदि-सिद्धि आरोग्य प्रदानी
आयु, शक्ति, यश, भक्ति दानी
रविमण्डल में रूप विराजे
अंधियारे पे उजाला साजे
आधि व्याधि सब डर के भागे
जो भी शरण तुम्हारी आता !

सकल जगत में रूप तुम्हारा
तुम हो तेज पुंज की धारा
भक्त अचल मन आया द्वारे
कर दे पूरन काज हमारे
तेरी भक्ति की राह चले जो
जग में सब सुख वह पा जाता।

चन्द्रघण्टा

सिहं वाहिनी चारू छटा माँ
तुम दुर्गा की शक्ति तृतीया
हे ! दस भुजी चन्द्रघण्टा मां।

धनुषबाण जपमाल कमंडल
गदा त्रिशूल तलवार कमल
अर्द्ध चन्द्र माथे पर सोहे
भव्य मुकुट भक्ती मन मोहे
सुबरन अंग लाल चूनर में,
पावन रूप सिंगार सजा मां।

चंडध्वनि से दानव डरते
किन्तु भक्त सब निर्भय रहते
तेरा पुजारी पूजा जाता
बिन मांगे यश वैभव पाता
पल में आसन छोड़ के धायी,
भक्तों ने जब नाम रटा मां।

विनती यही अभी दर्शन दे
सदा सजग रहने का मन दे
लोक और परलोक बना दे
भव बाधा से मुक्त करा दे
तेरे दरस बिन रहा न जाये
जिद्दी बालक यहीं डटा मां।